गुरुवार, 22 मार्च 2018

Vadvanal - 23







 ‘‘कल की मीटिंग में अनेक जहाज़ों और नाविक तलों के प्रतिनिधि उपस्थित नहीं थे। उनकी जानकारी के लिए; और कोचीन, कलकत्ता, कराची, जामनगर आदि नाविक तलों के और समुद्र में मौजूद जहाज़ों के सैनिकों ने हमारे साथ ही विद्रोह किया था - उन्हें अपना निर्णय बताना होगा। वरना नौदल अधिकारियों द्वारा भेजे गए आत्मसमर्पण के सन्देश पर वे कोई कार्रवाई नहीं करेंगे।’’ दत्त का सुझाव सही था।
खान ने मैसेज पैड अपने सामने खींचा और वह सन्देश लिखने लगा:
‘‘सुपर फ़ास्ट – 230600 - प्रेषक सेंट्रल स्ट्राइक कमेटी – प्रति - सभी जहाज़ और नाविक-तल = सेन्ट्रल स्ट्राइक कमेटी ने पूरी तरह विचार करने के बाद बिना शर्त आत्मसमर्पण करने का निर्णय लिया है। यदि हमने आत्मसमर्पण नहीं किया तो गॉडफ्रे ने हवाई हमला करके पूरी नौसेना को नष्ट करने की धमकी दी है। वह अपनी धमकी उपलब्ध रॉयल एअर फोर्स से हवाई जहाज़ों और मुम्बई बन्दरगाह के बाहर खड़े रॉयल नेवी के क्रूज़र ग्लास्गो की सहायता से पूरी करेगा। हमारे संघर्ष के दौरान पिछले दो दिनों में करीब तीन सौ निरपराध नागरिक मारे गए और पन्द्रह सौ ज़ख़्मी हो गए। यदि हम अपना संघर्ष जारी रखते हैं तो शहीद होने वालों और घायलों की संख्या बढ़ती ही जाएगी। निरपराध नागरिकों के जीवन से खेलने का हमें कोई अधिकार नहीं है। याद रखिये,   हम डर के अंग्रेज़ों की शरण में नहीं जा रहे हैं, बल्कि राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं द्वारा की गई अपीलों के जवाब में कर रहे हैं। इन नेताओं ने यह सुनिश्चित करने का वादा किया है कि आत्मसमर्पण के बाद विद्रोह में शामिल सैनिकों पर बदले की भावना से कार्रवाई नहीं की जाएगी। उनके वादे पर विश्वास करते हुए इस संघर्ष को पीछे लेने का निर्णय किया है। फ्लैग ऑफिसर बॉम्बे से सूचना प्राप्त होने पर जहाज़ों और नाविक तलों पर काले या नीले झण्डे चढ़ाए जाएँगे और नाविक तलों तथा जहाज़ों के सैनिक फॉलिन होंगे। जहाज़ों के सैनिक मुम्बई की दिशा में मुँह करके खड़े हों। इसके बाद आत्मसमर्पण की औपचारिकताएँ पूरी की जाएँगी=
सन्देश नर्मदा के सिग्नल ऑफ़िस को सौंप दिया गया।
‘‘अब, आत्मसमर्पण की प्रक्रिया आरम्भ होने से पहले एक महत्त्वपूर्ण काम पूरा करना है,”  दत्त ने खान से कहा।
‘‘कौनसा काम?’’
‘‘यहाँ आते हुए हम अपने विद्रोह सम्बन्धी कागज़ात साथ लाए थे। यहाँ आने के बाद उनकी संख्या बढ़ी ही है। इन कागज़ातों में हमारी बैठकों के नोट्स हैं,  समयसमय पर भेजे गए सन्देश हैं,  नाविक तलों और जहाज़ों के प्रतिनिधियों के नाम हैं और कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी है। ये सब अगर सरकार के हाथ पड़ गया तो सरकार उसका दुरुपयोग करेगी। सभी को तकलीफ़ होगी। हमें यह सब जला देना चाहिए।’’  दत्त के सुझाव को सबने मान लिया।
उन्होंने अपने काग़ज़ातों की होली जलाई। हर काग़ज को आग में डालते समय उनकी आँखें डबडबा जातीं। कल तक जिन काग़ज़ों को जान से भी ज़्यादा सँभालकर रखा था आज उनकी कीमत कौड़ियों जितनी हो गई थी। दिल के कोने में सहेजकर रखे कल की आज़ादी के सपने भी इन काग़जों के साथ जलकर ख़ाक हो गए थे। बची थी वास्तविकता की चुटकीभर राख। अपनी हार के और गलतियों के सुबूत उन्होंने जला दिए थे। उनकी नज़रों में अब सब कुछ ख़त्म हो गया था। पाँच दिन चले भीषण नाटक का परदा गिर चुका था। अब निडरता से भविष्य का  सामना करना था।



वातावरण में एक अजीब उदासी थी। तूफ़ान के बाद जैसी शिथिलता आ जाती है वैसी ही शिथिलता छाई थी। हवा चल रही थी। मास्ट पर चढ़ाए गए कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कम्युनिस्ट पक्ष के झण्डे सिमटे पड़े थे। उन्हें भी अपने भविष्य का ज्ञान हो गया था।
सुबह के सात बजकर पैंतीस मिनट हुए। फ्लैग ऑफ़िसर बॉम्बे का एक सन्देश सभी नाविक तलों और जहाज़ों के लिए ट्रान्समिट किया गया:
 - प्रति - ‌R.I.N. जनरल = 001 R.I.N.G. सब जहाज़ और नाविक तल काला अथवा नीला झण्डा चढ़ाकर जहाज़ों या नाविक तलों पर शान्त रहें। =
भारी मन से सैनिकों ने जहाज़ों से तिरंगे,  हरे और लाल झण्डे नीचे उतारे। झण्डे नीचे उतारते समय कुछ लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए। एक के बाद एक जहाज़ों से झण्डे उतारे गए। सभी जहाज़ों और तलों पर उदासी छा गई। सैनिक एकदूसरे के गले लग रहे थे, रो रहे थे, चिल्ला रहे थे। हार को स्वीकार करना उन्हें बहुत मुश्किल लग रहा था। कुछ देर बाद इस आघात से सँभलकर सैनिक जहाजों की अपर डेक पर फॉलिन हो गए। जैसे ही आठ बजे ब्रिटेन का नौसेना ध्वज सभी जहाज़ों पर तामझाम के साथ चढ़ाया गया। आठ बजकर पाँच मिनट पर रॉटरे ने फ़ास्ट मोटर बोट से गेटवे ऑफ इण्डिया से डॉकयार्ड तक एक चक्कर लगाकर सभी जहाज़ों का निरीक्षण किया।
ब्रिटिश अधिकारियों ने जहाज़ों और नाविक तलों पर कब्ज़ा किया और जहाज़ की चीज़ों की गिनती शुरू की।
‘‘कमांडिंग ऑफ़िसर कैसल बैरेक्सरिपोर्ट कर रहा हूँ। नाविक तल पर मौजूद अस्सी हजार रुपये नगद, कोडबुक्स और जहाज़ की अन्य सम्पत्ति को ज़रासा भी नुकसान नहीं हुआ है।’’
‘‘कमांडिंग ऑफिसर तलवार रिपोर्ट करता हूँ। लॉगबुक्स, सिग्नल कोडबुक्स, आर्म्स, स्टोर्स और अन्य वस्तुएँ सुरक्षित हैं ।’’
जहाज़ों और नाविक तलों को अपने अधिकार में लेने के बाद हर जहाज़ का कमांडिंग ऑफिसर रॉटरे को रिपोर्ट कर रहा था। कुछ जहाज़ों के गोलाबारूद का इस्तेमाल सैनिकों ने किया था। बाकी जहाज़ों की या नाविकतल अथवा जहाज़ छोड़कर जा चुके अधिकारियों की चीजों को किसी ने भी हाथ तक नहीं लगाया था।
‘‘ये सारी रिपोर्ट्स ज़ाहिर न होने देना। हमें इस तरह के आरोप करने चाहिए कि सैनिकों ने कैंटीन लूटीं,  स्टोर्स के ताले तोड़े।’’  रॉटरे ने सभी कमांडिंग ऑफिसर्स को धमकाया।



आत्मसमर्पण के बाद के दस घण्टे शान्ति से गुज़रे। किसी को भी गिरफ़्तार नहीं किया गया था। छह बजे के करीब ब्रिटिश सैनिक जहाज़ों और तलों पर गए।
'Clear lower decks' क्वार्टर मास्टर ने घोषणा की। सारे सैनिक बैरेक से मेस डेक से बाहर निकले और फॉलिन हो गए। हाज़िरी ली गई।
''You, No-5 From the First Line, Come out...'' सैनिकों को चुनचुन कर निकाला गया और देखतेदेखते सैनिकों से भरे ट्रक्स नज़रों से ओझल हो गए।
‘‘कहाँ ले गए होंगे उन्हें?’’ मदन ने खान से पूछा।
‘‘क्या पता! मेरा ख़याल था कि सबसे पहले हमें उठाएँगे,  मगर हमें पकड़ा ही नहीं!’’  खान ने आश्चर्य से कहा।
‘‘अरे, आज छोड़ा है,  मगर कल तो पकड़ेंगे ही। बकरे की माँ कब तक ख़ैर मनाएगी?’’  मदन ने हँसकर पूछा। 
 ‘‘अरे, अब सूली पर चढ़ने की पूरी तैयारी है अपनी!’’  खान ने जवाब दिया।
तलवारके और अन्य जहाज़ों के नेताओं के ध्यान में यह बात शीघ्र ही आ गई कि जैसे काँटे पर आमिष लटकाया जाता है, उसी तरह उन्हें जहाज़ों पर रखा गया था। यदि किसी सैनिक को उनसे बात करते देखा जाता तो एकदो घण्टों में वह सैनिक जहाज़ से हटा दिया जाता।



25 तारीख को सुबह दस बजे सेन्ट्रल कमेटी के सभी सदस्यों को गिरफ्तार करके कैसल बैरेक्स लाया गया। बैरेक्स में चारों ओर से कनात लगा ट्रक तैयार ही था। इस ट्रक में जानवरों की तरह सबको ठूँसा गया और ट्रक पूरे वेग से चल पड़ा। कोई भी समझ नहीं पा रहा था कि ट्रक कहाँ जा रहा है। करीब दोढाई घण्टे बाद ट्रक रुका। गेट खोलने की आवाज़ आई। ट्रक गेट के भीतर घुसा। सभी गिरफ्तार सैनिकों को नीचे उतारा गया।
‘‘कहाँ आए हैं हम?’’  कुट्टी ने पूछा।
Don't talk, Keep Silence.'' एक गोरा अधिकारी चिल्लाया। सब शान्त हो गए। कैदियों की पावती दी गई...और जिस तरह जानवरों को हाँका जाता है उसी तरह हाँकते हुए उन्हें उस कैम्प में लाया गया। नौसेना के विद्रोही सैनिकों को रखने के लिए ही वह कैम्प बनाया गया था। किट बैग सिर पर रखकर भगाते हुए उन्हें बैरेक में ले जाया गया।
‘‘स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहे थे क्या?   अब सड़ो इस नरक में!’’   गुरु अपने आप से बुदबुदाया।
‘‘ये कहाँ की बैरेक्स हैं! ये तो पशुशाला है!’’ मदन ने बैरक में घुसते ही कहा। आठआठ फुट ऊँचे बारह बैरेक्स,  तीन ओर कच्ची दीवारें,  चौथी बाजू खुली ही थी,  आओजाओ घर तुम्हारा। ऊपर टीन की छत। नीचे नमी,  कहींकहीं घासवाली ज़मीन। बैरक्स में दरवाजे़ नहीं,  खिड़कियाँ नहीं। बैरेक्स में न तो आलमारियाँ थीं,  न खूँटियाँ,  सिर्फ पत्थर और उनमें जानवरों के समान ठूँसे गए सैनिक। सण्डास नहीं,  प्रातर्विधि,  स्नान...  सब कुछ खुले में। चारपाँच किलोमीटर के परिसर में फैली छावनी के चारों ओर कँटीले तार की बागड़ और बागड़ के बाहर आठदस फुट तक फैली थीं सूखी, कँटीली डालें। चारों ओर ऊँचेऊँचे मचान, उन पर लाइट मशीनगनधारी सैनिकों का खड़ा पहरा। घास में गिरी सुई भी स्पष्ट नज़र आए ऐसी तेज़ रोशनी वाले सर्च लाइट। कैम्प में कैदियों की संख्या थी चार सौ और पहरे पर तैनात सैनिक थे एक सौ। कैम्प के आसपास कोई मानव बस्ती ही नहीं थी। चारों ओर था घना जंगल और साथ था इस जंगल के जानवरों का...। रात के समय मच्छरों के संगीत का साथ देती सियारों की कुईकुई, और फिर सैनिक पूरी रात जागकर बिताते।
‘‘जर्मनी के यातनाशिविर और ये कैम्प,  इनमें कोई फ़र्क नहीं है!’’  गुरु को जर्मनी के यातनाशिविरों के बारे में पढ़ा हुआ वर्णन याद आया।
‘‘यहाँ बस गैस चेम्बर और ब्रेन वाशिंग की कमी है!’’ दास ने इस कमी की ओर इशारा किया।
‘‘गैस चेम्बर न भी हो, मगर इसके बदले कुछ और होगा। धीरेधीरे सब पता चलेगा।’’ इनसे पहले पहुँचे जी. सिंह ने कहा।
‘‘यहाँ कितने लोग हैं?’’  मदन ने पूछा।
‘‘आज आए तुम पचास लोगों को मिलाकर चार सौ,  यह मेरा अनुमान है, क्योंकि रोज़ यहाँ से सैनिकों को हटाया जाता है और यहाँ नये सैनिक लाए जाते हैं। चार दिन पहले सारे मुस्लिम सैनिकों को यहाँ से हटाया गया था।’’ जी.सिंह जानकारी दे रहा था।
‘‘अरे,  मतलब इन्होंने गिरफ़्तार कितने सैनिकों को किया है?’’  मदन ने पूछा।
“मेरा ख़याल है कि दो से ढाई हज़ार तक सैनिकों को पकड़ा होगा,” जी. सिंह ने अपना अनुमान व्यक्त किया।
‘‘, चलो अपनीअपनी जगह पर चलो...बात नर्इं करने का।’’ बैरेक के बाहर खड़ा एक कठोर चेहरे वाला भूदल सैनिक चिल्ला रहा था। इकट्ठा खड़े सैनिक अपनीअपनी जगह चले गए।
उस बेस कैम्प में मेस थी ही नहीं। खाना कहीं और से ट्रक में लाया जाता, पानी टैंकर से आता। सभी अपर्याप्त। दोपहर के भोजन की घण्टी बजी और सब प्लेटें लेकर भागे।
‘‘अरे, मैंने कहा था न, यहाँ गैस चेम्बर नहीं है, मगर स्टोन चेम्बर तो है।’’ जी.  सिंह दाँत के नीचे आया कंकड़ निकालते हुए बोला,  ‘‘साला,  यहाँ के और जो बेस में मिलता था उस खाने में कोई फर्क नहीं है।’’ मदन कुड़कुड़ाया।
‘‘और खाना भी पूरा नहीं।’’ कुट्टी ने चावल का आख़िरी निवाला ठूँसते हुए कहा। ‘‘खाना कौन से कोने में जाकर छुप जाता है, पता ही नहीं चलता।’’
‘‘इसी अधूरे खाने से रात को मच्छरों को खून की सप्लाई करनी पड़ती है। अंग्रेज़ों और मच्छरों में कोई फर्क ही नहीं है। मच्छर रात में,  तो अंग्रेज़ दिन में खून चूसते हैं।’’ जी. सिंह ने हँसते हुए कहा।
‘‘इस पर उपाय क्या है?’’   मदन ने पूछा।
‘‘यहाँ हम चार सौ हैं। यहाँ भी...’’   गुरु ने कहा।
‘‘मैं नहीं समझता,  कि हम सबको इकट्ठा करके एक बार फिर आवाज़ उठा सकेंगे। एक बार लड़ाई हार जाने के बाद इतनी जल्दी फिर लड़ाई के लिए कोई तैयार नहीं होगा और हम पर तो विश्वास बिलकुल ही नहीं करेंगे।’’ खान ने भयानक सच सामने रखा।
‘‘अरे,  और सैनिक तैयार नहीं होंगे, ठीक है,  मगर हम तो हैं ना। या फिर हमने भी चूड़ियाँ पहन रखी हैं? हम संघर्ष करेंगे।’’   चट्टोपाध्याय ने आह्वान दिया।
‘‘ठीक है। मगर पहले हम शिकायत दर्ज करवाएँगे। देखेंगे क्या कार्रवाई होती है उस पर।’’ मदन ने सुझाव दिया। ‘‘आज तक एक बार नहीं, कई बार शिकायतें कीं। मगर कोई ध्यान ही नहीं देता। मैंने खुद दो बार शिकायत की, मगर एक ही जवाब मिलता है, कि चुपचाप खाना हो तो खाओ, वरना भूखे मरो!’’ जी. सिंह ने अपना अनुभव सुनाया।
‘‘ठीक है। मैं जाकर दर्ज करता हूँ शिकायत। देखूँ तो कैसे ध्यान नहीं देते।’’  चट्टोपाध्याय ने ज़िम्मेदारी ली।



उस बैरेक में दिनभर जाँच कमेटियों का काम होता था। जाँचकमेटी  तो बस आँखों में धूल फेंक रही थी। विभिन्न जहाज़ों के कमांडिंग ऑफिसर्स ही जाँच कर रहे थे। नर्मदा के असलम  की गवाही ली जा रही थी।
‘‘तुम अपने संघर्ष के बारे में विस्तार से बताओ, ’’ जाँच करने वाले ले. कमाण्डर मिल ने गुर्राकर पूछा।
‘‘मैंने एक हिन्दुस्तानी होने के कारण इस संघर्ष में भाग लिया था, ’’  असलम ने मिल की नज़रों से नजरें मिलाते हुए जवाब दिया।
‘‘मुझे विस्तारपूर्वक जवाब चाहिए।’’  ले. कमाण्डर मिल गुर्राया।
‘‘ठीक है,  मेरा खुलासेवार जवाब नोट करो। मैं अन्य सैनिकों की ही तरह इस संघर्ष में शामिल हुआ। पूरी हिन्दुस्तानी जनता को यह मालूम है कि हिन्दुस्तानी नौसैनिकों ने उन पर होने वाले अन्याय दूर होने तक,  काले-गोरे का भेद ख़त्म होने तक और आज़ादी मिलने तक संघर्ष करते रहने का निश्चय किया है। हमारे दिल में लगी शत्रुत्व की और द्वेष की आग कितनी तीव्र है यह तुम गोरों को वक्त आने पर पता चलेगा। और कोई खुलासा चाहिए?’’ असलम ने हँसते हुए पूछा।
यहाँ पर कुछ भी हाथ नहीं लगने वाला यह मिल समझ गया और उसने मन में निश्चय कर लिया कि यह कोशिश करूँगा कि असलम को ज़्यादा से ज़्यादा सज़ा मिले।
दूसरे दिन से असलम उस कैम्प में नज़र ही नहीं आया।



‘‘देख, तू चुपचाप सारे गुनाह कुबूल करके दत्त, खान, मदन और जिसका हम नाम लें, उसके ख़िलाफ गवाही देने के लिए तैयार है, तो हम तुझे छोड़ देंगे, वरना...’’ ले. कमाण्डर सालभर पहले भर्ती हुए पाटिल को धमका रहा था। ‘‘तेरे बाप के नाम की ज़मीन ज़ब्त कर लेंगे और तेरे बाप को भी तुझे शह देने के इलज़ाम में जेल में डाल देंगे। तेरे छोटेछोटे भाईबहन फिर भूखे मरेंगे। बोल, क्या मंज़ूर है?  यदि यह सब टालना है तो हमारी शरण में आ।’’
डरा हुआ पाटिल ज़ोरज़ोर से रोने लगा और उसने स्नो के पैर पकड़ लिये। ‘‘मुझे माफ़ करो,  सर, मुझे माफ़ करो!’’
स्नो के चेहरे पर वहशी हँसी थी,  ‘‘ठीक है। अब उठ। गार्ड रूम में जो काग़ज़ हैं उन पर साइनकर और वहीं ठहर। तेरा जहाज़ कौनसा है?  पंजाबना ?  तुझे वहाँ भेज दिया जाएगा। मगर याद रख,  अगर ज़ुबान से फिरा तो!’’ स्नो ने धमकाया।
‘‘नहीं सर, जैसी आप कहोगे वैसी ही गवाही दूँगा,’’  पाटिल ने कहा और वह गार्ड रूम की ओर भागा। अब उसे वहाँ मौजूद सैनिकों से डर लग रहा था।



‘‘सर, हमें यहाँ जो खाना मिल रहा है वह अपर्याप्त तो है ही,  मगर वह बेहद गन्दा भी है।’’   चट्टोपाध्याय अपने हाथ की प्लेट लेफ्टिनेंट ए.सिंह के सामने नचाते हुए शिकायत कर रहा था।
ले.  ए.  सिंह उसकी ओर ध्यान न देते हुए ड्यूटी पेट्टी ऑफ़िसर जेम्स से बात करने लगा। चट्टोपाध्याय ने पलभर राह देखी और एकदो बार उसे पुकारा। सिंह ध्यान देने को तैयार नहीं है, यह देखते ही उसका गुस्सा बेकाबू हो गया। ''Look, Duty officer,'' चट्टोपाध्याय ने सिंह की कमीज़ की आस्तीन पकड़ के खींची।
एक विद्रोही कैदी इस तरह की बदतमीज़ी करे,  यह सिंह से बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने चट्टोपाध्याय का गिरेबान पकड़कर उसे दूर धकेल दिया। चट्टोपाध्याय मुँह के बल गिर गया। खाना चारों ओर बिखर गया।
‘‘ साले भडुए, चुपचाप जो मिलता है खा ले, वरना गाँ*** पर लात पड़ेंगी!’’  सिंह चिल्लाया।
दूर खड़े खान, दास, मदन, गुरु वगैरह पन्द्रहबीस लोग भागकर आए और उन्होंने चट्टोपाध्याय को उठाया।
‘‘दोस्तों! हमने संघर्ष वापस लिया है इसका मतलब यह नहीं है कि अपना आत्मसम्मान गिरवी रख दिया है। आत्मसमर्पण करते समय ही हमने सरकार को और वरिष्ठ नौदल अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि यदि हममें से एक पर भी बदले की कार्रवाई की गई तो हम फिर से विद्रोह कर देंगे। मेरा ख़याल है कि वह वक्त आ गया है। विद्रोह के एक कार्यक्रम के रूप में मैं आमरण अनशन शुरू कर रहा हूँ।’’  खान ने अपना निर्णय सुनाया और पालथी मारकर नीचे बैठ गया। ‘‘वन्दे मातरम्!’’
‘‘महात्मा गाँधी की जय...’’  नारे शुरू हो गए।
नारे सुनकर बेस कैप्टन,  कैप्टन नॉट भागकर आया।
‘‘क्या गड़बड़ है?  क्या कहना चाहते हो तुम लोग?’’ उसने आगे आते हुए पूछा।
‘‘हमारी माँगें पूरी हुए बिना हम अनशन नहीं तोड़ेंगे।’’ खान ने कहा।
नॉट देखता ही रह गया। चार दिन पहले ही जिन सैनिकों ने बिना शर्त आत्मसमर्पण किया था, वही आज फिर शक्तिशाली ब्रिटिश हुकूमत के सामने डंड ठोकते हुए अपने पुराने जोश से खड़े थे।
अभी इनकी मस्ती ख़त्म नहीं हुई है,’  नॉट अपने आप से बुदबुदाया।
‘‘क्या चाहते हो तुम लोग?’’ उसने सैनिकों से पूछा।
 ‘‘लेफ्टिनेंट ए. सिंह सैनिकों से माफ़ी माँगे, खाने की क्वालिटी सुधरनी चाहिए और ज़्यादा खाना मिलना चाहिए।’’
‘‘अख़बारों से और राष्ट्रीय नेताओं से सम्पर्क स्थापित करने की इजाज़त मिलनी चाहिए। हमें कानूनी सलाह मुहैया कराई जाए, और जाँच कमेटी पक्षपाती नहीं होनी चाहिए।’’ खान ने अपनी माँगें पेश कीं।
‘‘वेल,  तुम्हारी माँगें पूरी करना मेरे अधिकार में नहीं है। मैं वरिष्ठ अधिकारियों के पास भेज देता हूँ। तब तक तुम लोग शान्त रहो,  वरना...’’  नॉट ने धमकी दी ।
‘‘हमारी माँगें पूरी होने तक हमारा सत्याग्रह जारी रहेगा।’’  खान ने शान्ति से कहा।
सैनिकों का विद्रोह निर्ममता से कुचल देना चाहिए। कुछ और ट्रूप्स मँगवा लेता हूँ,’ उसने सोचा और अपने ऑफिस की ओर चला। उसने मेसेज पैड सामने खींचा और रॉटरे के लिए सन्देश घसीटा:
=सुपर फास्टप्रेषक - मुलुंड कैम्प – प्रति - फ्लैग ऑफिसर बॉम्बे = सैनिकों का अन्न सत्याग्रह। अतिरिक्त भूदल सैनिक चाहिए =
सत्याग्रह पर बैठे सैनिकों की संख्या अब पचास हो गई थी। मराठा रेजिमेंट के सैनिक उनके चारों ओर घेरा डाले हुए थे। गुरु को उनके चेहरे जानेपहचाने प्रतीत हुए। उसकी नज़र एक चेहरे पर जम गई।
‘‘क्या हाल हैं, साळवी! हमारातुम्हारा साथ छूटता नहीं है!’’ ‘तलवारको जिन सैनिकों ने घेरा था उनमें साळवी भी था और उस समय उसकी गुरु, दत्त, मदन तथा अन्य अनेक सैनिकों से दोस्ती हो गई थी।
‘‘तुम नेवीवाले बड़े भारी पड़ रहे हो, रावजी! इतनी सारी रामायण हो गई फिर भी तुम्हारा डंक तना ही है। मान   गए तुमको!’’  साळवी की आँखों में प्रशंसा थी।
‘‘कदम साब आपको बहुत याद करते हैं, ’’  साळवी ने कहा।
‘‘हमारा रामराम कहना उनसे।’’ गुरु ने कहा।
दास,   मदन,   खान और गुरु ने बैरेक में जाने का निश्चय किया और वे सब बैरेक में आ गए।
‘‘यहाँ के हालात के बारे में हमें अपने बाहर के दोस्तों को सूचित करना चाहिए।’’ खान ने कहा।
 ‘‘आज हम उसे तैयार करेंगे,  भेजने का इन्तज़ाम मैं करता हूँ।’’  गुरु ने आश्वासन दिया।



‘‘बाहर क्या हो रहा है, यही समझ में नहीं आता। दिन निकलता है और डूब जाता है। हर आने वाला दिन कुछ नये सैनिक कैम्प में लाता है और डूबते हुए कुछ सैनिकों को ले जाता है। रेडियो नहीं,  अख़बार नहींबस,  बैठे रहो। बुलाने पर जाओ और पूछे गए आड़ेतिरछे सवालों के जवाब दो। कब ख़त्म होगा यह सब?’’  चट्टोपाध्याय परेशान आवाज़ में बोला।
‘‘ये लो कुछ पुराने अखबार।’’ जी.  सिंह ने पेपरों का एक बण्डल उनके सामने डाला।
‘‘तुझे कहाँ से मिले?’’  खान ने पूछा।
‘‘मिले नहीं। हासिल किये। कुछ यहाँ आए हुए सैनिकों से, कुछ पहरे पर तैनात सैनिकों से।’’ जी. सिंह ने जवाब दिया। उन अख़बारों पर सभी भूखों की तरह टूट पड़े।
‘‘साळवी सा, रा ध्यान रखना। कोई आता दिखे तो खाँसकर सावधान करना!’’  गुरु ने साळवी से कहा।
‘‘ठीक है। इत्मीनान रखो!’’ साळवी ने आश्वासन दिया।
सब लोग उन बासे,  मगर उनके लिए ताज़े अख़बारों को पढ़ने में मगन हो गए।
‘‘आख़िर में कांग्रेस ने सेन्ट्रल असेम्बली में स्थगन प्रस्ताव पेश कर ही दिया।’’ दास ने कहा।
‘‘स्थगन प्रस्ताव तो पेश किया मगर हमारे विद्रोह के पीछे जो कारण थे, वे तो उसमें प्रतिबिंबित ही नहीं हुए। एक ही कारण बताया गया। मुम्बई, कलकत्ता, कराची और अन्य शहरों में जो गम्भीर परिस्थिति निर्माण हुई उसका कारण यह था कि अधिकारी परिस्थिति को ठीक से सँभाल नहीं पाए। मुस्लिम लीग और कांग्रेस के वक्ता एक के बाद एक बोलते रहे,  मगर उन्होंने भी एक ही मुद्दा सामने रखा: सरकार परिस्थिति सँभाल नहीं सकी। हमारी माँगें क्या थीं, स्वतन्त्रता की माँग पर हम किस तरह से अड़े हुए थे इस बारे में किसी ने भी कुछ भी नहीं कहा ।’’  खान यह बता रहा था कि राष्ट्रीय पक्षों ने स्थगन प्रस्ताव तो रखा मगर महत्त्वपूर्ण मुद्दों को किस तरह छोड़ दिया।
‘‘अली ने कहा,  सैनिकों को पार्टियों की राजनीति से दूर रहना चाहिए और उन्हें निष्पक्ष देशभक्त होना चाहिए। मैं तो यही समझ नहीं पा रहा हूँ कि वह कहना क्या चाहते हैं। देशप्रेमी सैनिक गुलामगिरी लादने वाली विदेशी हुकूमत की ओर से कैसे लड़ सकते हैं?  वे भी सरदार पटेल ही की तरह ये कह रहे हैं कि स्वतन्त्रता की नैया किनारे से लगने ही वाली है।‘’ गुरु की आवाज़ में चिढ़ थी। “ मसानी को छोड़कर बाकी हर वक्ता कमोबेश सरकार का ही पक्ष ले रहा था। हमारे साथ चर्चा करते हुए जिन्होंने ब्रिटिश सरकार को गालियाँ दी थीं वे भी गला फाड़फाड़कर कह रहे थे कि यह संकट जड़ से ही उखाड़ा जा सकता था,  मगर सरकार ने वैसा किया नहीं।’’
‘‘तुम जो कह रहे हो, वह सच है । असल में सिर्फ मसानी ही हमारे पक्ष में बोले। बेशक,  उन्होंने हमारी माँगों के बारे में कुछ कहा नहीं,  मगर निडरता से यह कह दिया कि जब तक देश की आर्मी,  नेवी और एअरफोर्स शान्त हैं, तभी तक अंग्रेज़ इस देश को छोड़ दें। देशहित की दृष्टि से राष्ट्रीय नेताओं और पार्टियों ने सरकार का साथ दिया इसीलिए परिस्थिति पर काबू पाया जा सका। नैतिक दृष्टि से यदि किसी की जीत हुई है, तो वह आत्मसमर्पण करने वाले सैनिकों की, सरकार की नहीं।’’ बैनर्जी ने कहा।
‘‘ये गोरे हमें इस तरह नहीं छोडेंगे। हम पर अत्याचार करेंगे, हमारा जीना दूभर कर देंगे और ये नेता चुपचाप बैठे रहेंगे,  क्योंकि उनकी राय में हम ऐसे सैनिक हैं जिन्होंने चार पैसे ज़्यादा कमाने के लिए,  अच्छे खाने के लिए, अधिक सुविधाओं के लिए हथियार उठाए थे। हमारे देशप्रेम को,  स्वतन्त्रता की हमारी आस को वे समझ ही नहीं पाए। अब तो हम हो गए निपट अकेले ।’’ दास के स्वर में निराशा थी।
‘‘तुम ठीक कह रहे हो। एचिनलेक ने तो 25 तारीख को साफ़साफ़ कह दिया है कि विद्रोह के नेताओं की और विद्रोह में शामिल सैनिकों की स्वतन्त्र रूप से पूछताछ करके उन पर कार्रवाई की जाएगी। वॉर सेक्रेटरी मैसन ने भी सेन्ट्रल असेम्बली में यही कहा था - कुछ भिन्न शब्दों में। सरकार की नीति यह है कि किसी पर भी बदले की भावना से कार्रवाई न की जाए और मेजर जनरल लॉकहर्ट को भी इसकी सूचना दे दी गई है। मगर सरकार उन्हें खास सूचनाए देकर उनके हाथ नहीं बाँधना चाहती,  उन्हें उनके रास्ते से जाने दे रही है।’’  गुरु ने दास की राय का समर्थन किया।
‘‘मतलब, मैसन ने और सरकार ने यह मान लिया है कि विद्रोह में शामिल हुए सैनिकों को चुनचुनकर निकाला जा रहा है और उन्हें कुचलने का काम जारी है। और इस बात पर सभी राष्ट्रीय नेता ख़ामोश हैं।’’   मदन ने कहा।
‘‘एक बात याद रखो। हमने जो कुछ भी किया, जानबूझकर किया है। परिणामों की कल्पना हमें थी। अब हमारा साथ देने वाले,  देशपाण्डे जैसे,  अपनी चमड़ी बचाने की कोशिश कर रहे हैं। फ्री प्रेस में उनका लेख देखा?  वही पुरानी कहानी और सरकार को मुफ़्त में सलाह। इस विद्रोह को बाहर से किसकी शह थी,  यह पता करने में समय न गँवाए। इस विद्रोह के पीछे के असली गुनहगार तो तलवारके रसोइये हैं। ये सभी Fair weather Friends थे। सरकार के विरोध में हमारा संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ है, वह अभी चल ही रहा है। जो चाहे वो कीमत चुकाकर अपने आत्मसम्मान को बचाना है। आज़ादी के लिए लड़ने की हमारी तैयारी थी,  है, और रहेगी। जो मिले उस सज़ा का हम निडरता से सामना करें यही हमारे उद्देश्य का और उसके लिए अंगीकृत किए कार्य का गौरव है।’’ खान ने मुरझाए हुए सैनिकों में जान डाल दी।



‘‘तुम ऐसा क्यों नहीं करते कि ये सारी माँगें लिखकर मुझे दे दो। मैं उन पर शान्ति से सोचूँगा और तुम्हें सूचित करूँगा। मेरा ख़याल है कि तुम यह भूख हड़ताल छोड़ दो।’’  रॉटरे ने सलाह दी।
‘‘माँगें पूरी होते ही छोड़ देंगे।’’ खान ने जवाब दिया।
‘‘रॉटरे समझ गया कि यदि समय पर ही इसे नहीं रोका गया तो मामला हाथ से बाहर चला जाएगा। उसने नॉट को इस सम्बन्ध में सूचना दी और वह बाहर निकल गया।



सैनिकों के उपोषण का आज तीसरा दिन था। उपोषण पर बैठे सैनिकों के चेहरे पीले पड़ गए थे। कमज़ोरी के कारण उनसे चला भी नहीं जा रहा था। वे समझ गए थे कि उनका यह संघर्ष एकाकी है, निष्फल है। वे बाज़ी हार गए हैं,  मगर उनका जाग चुका आत्मसम्मान उन्हें चेतना दे रहा था।
दोपहर दो बजे के करीब कैप्टन नॉट दनदनाता हुआ सैनिकों की बैरक की ओर आ रहा था। रॉटरे के सुझाव के अनुसार खान को इन सैनिकों से अलग करने का उसने निश्चय कर लिया था। इसके लिए आवश्यक काग़ज़ात भी उसने तैयार कर लिए थे। उसकी सर्विस डॉक्टयूमेंट में उसने टिप्पणी लिखी थी,  ‘‘बेहद ख़तरनाक क्रान्तिकारी। सैनिकों को अपने पक्ष में करने में उस्ताद। यह जहाँ भी रहता है, तूफ़ान खड़ा कर देता है।’’
‘‘मैं तुम्हें एक घण्टे की मोहलत देता हूँ,  तीन बजे से पहले अगर तुमने अन्न सत्याग्रह नहीं तोड़ा तो मुझे किसी और रास्ते से जाना होगा।’’ नॉट ने सैनिकों को अन्तिम चेतावनी दी।
‘‘हमारा निश्चय पक्का है। तुम्हें जो कार्रवाई करनी है, कर लो!’’  खान के जवाब में बेपरवाही थी।
अपमानित नॉट वहाँ से निकल गया और अगली कार्रवाई की तैयारी में लग गया।
‘‘क्या तय किया है तुम लोगों ने?’’   घण्टेभर बाद वापस आए नॉट ने पूछा।
‘‘तय क्या करना है? हम अपने निर्णय पर कायम हैं।’’  खान ने जवाब दिया।
''Guards...Guards!'' नॉट चिल्लाया। भूदल के चार जवान आगे आए।
‘‘उठाओ इस साले को।’’ खान की ओर इशारा करते हुए नॉट चिल्लाया। नॉट का इरादा सैनिक समझ गए और उन्होंने खान के चारों ओर घेरा बना लिया।



सुबहसुबह ही रीअर एडमिरल रॉटरे मुलुंड कैम्प में दाखिल हुआ। विद्रोह के दौरान उसके चेहरे पर जो चिन्ता की रेखाएँ थीं, उनका अब नामोनिशान नहीं था। विद्रोह के दौरान उसके द्वारा उठाया गया हर कदम उचित ही था इस बात की सरकार द्वारा पुष्टि किये जाने से उसका आत्मविश्वास बढ़ गया था। शुरू से ही मगरूर चेहरे पर कुछ और धृष्टता छा गई थी।
रॉटरे कैम्प में आया और एक ही दौड़धूप होने लगी। मराठा रेजिमेंट के सन्तरी अटेन्शन में आ गए। नॉट भागकर रॉटरे के सामने आया ।
‘‘कहाँ हैं वे?’’   रॉटरे ने पूछा ।
‘‘उस सामने वाली बैरेक में, ’’  नॉट ने कहा।
‘‘और बाकी के सैनिक?’’  रॉटरे ने पूछा।
‘‘वहीं, उसी बैरेक में।’’ नॉट ने कहा।
रॉटरे के चेहरे पर नाराज़ी साफ़ झलक रही थी।
‘‘कौन बैठै हैं सत्याग्रह पर?’’  रॉटरे ने पूछा।
 ‘‘खान, दास, गुरु, मदन...’’  नॉट ने कहा।
'Bastards! उन्हें तो मुझे तो अच्छा सबक सिखाना है!  रॉटरे अपने आप से बुदबुदाया। इन सैनिकों के प्रति द्वेष उसके चेहरे पर साफ़   झलक   रहा   था ।
ग्रिफ़िथ के साथ तलवार पर आया था तो कैप उतरवाई थी, आज मैं तुम्हारे कच्छे उतरवाता हूँ!  वह अपने आप से बुदबुदाया और बोला,  ‘‘नॉट, do not spare them! F***them left and right!''  रॉटरे की आँखों में अंगारे दहक रहे थे|
‘‘ये प्लेग के जन्तुओं से भी ज़्यादा ख़तरनाक हैं। सत्याग्रह का रोग ये देखतेदेखते चारों ओर फैला देंगे। उस खान को पहले अलग करो।‘’
‘‘ठीक है सर, आज ही उसे अलग करता हूँ।’’  नॉट ने जवाब दिया।
‘‘नहीं। जल्दी मत करो। उनसे उपोषण पीछे लेने को कहो। यदि उन्होंने उपोषण खत्म नहीं किया तो फिर कार्रवाई करो।’’ रॉटरे ने सलाह दी।
''Hello, boys! What's the problem?'' रॉटरे ने उपोषण पर बैठे सैनिकों से पूछा। आवाज़ में भरसक मिठास लाने की कोशिश करते हुए उसने आगे कहा, ‘‘जितनी हो गई, उतनी रामायण बस नहीं हुई क्या?  क्यों फ़ालतू में अपने आप को और हमें तकलीफ़ देते हो?’’
खान को और उसके साथियों को रॉटरे के ये नाटक अच्छी तरह मालूम थे। तलवार  पर उन्हें इसका अनुभव हो चुका था। खान ने तय किया कि बड़ी सावधानी से बोलेगा। उसने हाथ के इशारे से औरों को चुप रहने को कहा और बोला, ‘‘हमारा यहाँ का जीवन अनेक ख़ामियों से भरा है। उन ख़ामियों को दूर करो,  कानूनी सहायता हमें मिलनी चाहिए,  जाँच कमेटी पक्षपातरहित होनी चाहिए।’’
रॉटरे को खान की इन माँगों से दूसरे तूफ़ान की गन्ध आई। ‘‘दूर करो इन सबको और उठाओ उसको।’’  नॉट ने आगे बढ़कर भूदल के सैनिकों से कहा।
संगीनों को साधते हुए भूदल के सैनिक आगे बढ़े। उनमें से एक ने खान का गिरेबान पकड़कर उसे उठाने की कोशिश की,  मगर खान उठने को तैयार न था।
‘‘उठाओ उसे! पकड़ो उसकी टाँगें और गर्दन!’’ नॉट चीख रहा था।
चिढ़ा हुआ गुरु नॉट पर लपका। उसने उसकी कैप उछाल दी, कन्धे की स्ट्राइप्स खींच लीं। इस छीनाझपटी में नॉट की कमीज़ फट गई। चिढ़े हुए नॉट ने गुरु के चेहरे पर जूते से लात मारी और गुरु तिलमिलाते हुए पीछे दीवार से जा टकराया।
परिस्थिति ने गम्भीर मोड़ लिया।
''Come on, open fire.''  नॉट मराठा रेजिमेंट के सैनिकों पर चिल्लाया।
खान का गिरेबान जिन्होंने पकड़ा था,  उन्होंने उसे छोड़ दिया और वे खामोश खड़े रहे। आज्ञा का पालन करने के बदले भूदल के सैनिक शान्ति से खड़े हैं यह देखकर नॉट आपे से बाहर हो गया और चीख़ने लगा, ‘‘मेरा हुक्म है, गोली चलाओ! गोली चलाओ! ओपन फायर करो वरना मैं तुम्हारा कोर्ट मार्शल करवा दूँगा!’’
मराठा रेजिमेंट्स के सैनिकों ने अपनी राइफल्स नीचे कर लीं और सूबेदार मेजर कदम ने नॉट को तेज़ आवाज़ में धमकाया,  ‘‘साब,  ये हमारे दुश्मन नहीं हैं। ये सब हमारे भाई हैं। हम इन पर गोली नहीं चलाएँगे। तुम हमारा कोर्टमार्शल करो या हमारी जान ले लो। हम गोली नहीं चलाएँगे।’’
खान ने नारा लगाया,  भारत माता की...  और जयकी आवाज़ गूँजी, फिर बड़ी देर तक मुलुंड का कैम्प नारों से गूँजता रहा। अपमानित नॉट हाथपैर पटकते हुए निकल गया और नौसैनिकों का उत्साह दुगुना हो गया। मगर उनका यह उत्साह ज़्यादा देर नहीं टिका।
घण्टेभर में चार ट्रक भर के गोरे सैनिक आए। आते ही उन्होंने अपनी बन्दूकें और मशीनगन्स तानते हुए सत्याग्रह पर बैठे सैनिकों की बैरेक को घेर लिया।
कुछ गोरे सैनिकों ने मराठा रेजिमेंट के सैनिकों को गिरफ़्तार करके उन्हें नि:शस्त्र कर दिया।
''Come on, you two bastards, move out.'' प्लैटून कमाण्डर बैरेक में घुसकर गुरु और खान पर चिल्लाया। मगर सत्याग्रह पर बैठे नौसैनिक नारे लगाते रहे और गुरु और खान अपनीअपनी जगह पर इत्मीनान से बैठे रहे। बैरेक में हो रहा हंगामा सुनकर अन्य बैरेक्स के नौसैनिकों को भागकर इस बैरेक की ओर आते देखा तो नॉट समझ गया कि अगर ये चार सौ सैनिक एक हो गए तो परिस्थिति विकट हो जाएगी। वह चीखा, ''Stop them! open fire!'' गोरे  सैनिकों ने अपनी बन्दूकें तानीं और फ़ायरिंग शुरू कर दी। घबराए हुए सैनिक अपनीअपनी बैरेक्स में भाग गए।      गोरे सैनिकों ने खान, दास, चट्टोपाध्याय और गुरु को उठाकर सामने ही खड़े ट्रक में ठूँस दिया। दो बंदूकधारी गोरे सैनिक ट्रक में चढ़े और ट्रक अपनी पूरी गति से कैम्प के गेट से बाहर निकल गया। मराठा रेजिमेंट के सैनिकों को कैम्प से निकाल लिया गया।
मुलुंड कैम्प में उपोषण और भी कई दिनों तक चलता रहा। सैनिक डाँटफटकार से घबराए नहीं और न ही लालच के बस में हुए। अनेक लोगों को कमज़ोरी के कारण अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, कई लोग बीमार हो गए, मगर उपोषण चलता रहा।



मुलुण्ड के एवं अन्य कैम्पों में जाँच कमेटियों का काम जारी था। जो सैनिक शरण आ जाते,  हाथपैर जोड़कर माफ़ी माँग लेते उनका किस तरह से उपयोग किया जाए यह योजना बनाई जा रही थी। झूठी ज़ुबानियाँ दिलवाई जा रही थीं, सुबूत तैयार किए जा रहे थे।
विद्रोह में शामिल अनेक सैनिक डटे हुए थे। टूट जाऊँगा,  पर झुकूँगा नहीं – यह उनका सिद्धान्त था। उन पर छोटेमोटे आरोप लगाए जा रहे थे,  उन्हें डिस्चार्ज कैम्प में भेजा जा रहा था। आठ साल पहले दी गई पूरी किट को अच्छी हालत में वापस करने को कह रहे थे, हाथ में रेलवे का एक वारंट रख देते,  आठ वर्षों की सेवा के बाद यदि खाली जेब जाने की कोई शिकायत करता तो उसे जवाब मिलता,   ‘‘तुम विद्रोह में शामिल थे, तुमने अंग्रेज़ सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह किया था यह साबित हो चुका है और तुम्हें नौसेना से निकाल दिया गया है। किट वापस न करने के कारण पैसे काट लिए गए हैं। सरकार ने मेहरबानी करते हुए तुमसे वसूल की जाने वाली रकम माफ़ करके तुम्हारे केस को ख़त्म कर दिया है।’’
‘‘मुझ पर सैनिकअदालत में मुकदमा चलाओ!’’ एकाध सैनिक कहता।
‘‘तुम्हारा केस ख़त्म हो चुका है।’’ उसे जवाब मिलता।
रात को इन सैनिकों को नेवी पुलिस के चारपाँच गोरे जवानों के साथ रेलवे स्टेशन भेजकर रेलगाड़ी में ठूँसा जाता और इस बात का इत्मीनान कर लिया जाता कि वे उतर नहीं जाएँगे।
जिन्होंने विद्रोह का नेतृत्व किया,  जिन पर आरोप लगाए जा सकते थे, जो प्रारंभिक जाँच में ख़तरनाक प्रतीत हुए ऐसे सभी नौसैनिकों को विशेष जाँच समिति के सामने पेश किया गया, झूठेसच्चे आरोप लगाए गए,  सुबूतगवाह पेश किये गए। इन नौसैनिकों में खान था,  दास था,  गुरु था और कई अन्य लोग थे। इन्हें लम्बी अवधि की सज़ाएँ सुनाई गर्इं। कितने लोगों को सज़ाएँ मिलीं, कितने लोगों को नौसेना से निकाल दिया गया - यह संख्या कभी भी बाहर नहीं आई।




पूरब से स्वतन्त्रता की आहट आ रही थी। सभी लोग स्वतन्त्रता की तैयारी करने में मगन थे। मगर स्वतन्त्रता की सुबह के स्वागत के लिए जिन्होंने अपने खून का छिड़काव करने की तैयारी की थी उन्हें राष्ट्रीय नेता भूल गए थे, सामान्य जनता भी भूल गई थी।
स्वतन्त्रता का स्वागत करते हुए 14 अगस्त, 1947 की रात को पंडित जवाहर लाल नेहरू कह रहे थे, ''Long years ago we made a tryst with destiny....''
चारों ओर जश्न मनाया जा रहा था। मगर विद्रोह में शामिल हुए नौसैनिक घने अँधेरे में ठोकरें खाते हुए प्रकाश की एकाध अस्पष्टसी किरण ढूँढ़ रहे थे।
          

Vadvanal - 23

  ‘‘ कल की मीटिंग में अनेक जहाज़ों और नाविक तलों के प्रतिनिधि उपस्थित नहीं थे। उनकी जानकारी के लिए ; और कोचीन , कलकत्ता , कराची , ...